उत्तराखंडदेहरादून

महान पं. नैन सिंह रावत: साहस, नेतृत्व और वैज्ञानिक अन्वेषण की अमिट धरोहर

143 वीं पुण्यतिथि पर विशेष

शीशपाल गुसाईं, देहरादून

भारत के सीमांत जिले पिथौरागढ़ की मुनस्यारी तहसील, जो अपनी भौगोलिक विशेषताओं और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए जानी जाती है, ने एक महान संतति को जन्म दिया – पंडित नैन सिंह रावत। इनका जन्म 21 अक्टूबर 1830 को अमर सिंह रावत के घर हुआ। पंडित नैन सिंह रावत ने अपनी जिंदगी में ऐसे अद्वितीय कार्य किए, जिन्हें न केवल उनकी महानता का प्रमाणित करते हैं, बल्कि भारत के भूगोल और संस्कृति में भी महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं।

पंडित नैन सिंह रावत का जीवन उस समय में व्यतीत हुआ, जब देश पर ब्रिटिश राज का साया था। इस कठिन दौर में उन्होंने अपने ज्ञान और अनुभव का उपयोग करते हुए कई महत्वपूर्ण भूगोलिक और सांस्कृतिक अध्ययन किए। उनके कार्यों ने भारतीय भूगोल पर व्यापक प्रभाव डाला। ब्रिटिश सरकार ने उनके उत्कृष्ट कार्यों की सराहना करते हुए उन्हें कुछ गांवों की जागीर सौंपी, जो उनके कृतित्व का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है। उनकी मृत्यु एक फरवरी 1882 को उनके अपने गांव में हुई। रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी द्वारा जारी शोक संदेश में यह उल्लेखित किया गया कि उनकी मृत्यु कॉलरा से हुई थी। उनकी मृत्यु केवल एक व्यक्ति की अनुपस्थिति नहीं थी, बल्कि एक युग की समाप्ति थी, जिसने भारतीय भूगोल और अन्वेषण के क्षेत्र में एक बड़ा खालीपन छोड़ दिया।

नैन सिंह रावत भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने 19वीं सदी में तिब्बत और उसके आस-पास के क्षेत्रों का भौगोलिक सर्वेक्षण किया। उनकी यात्रा और कार्य न केवल ड्राइविंग फोर्स के रूप में ब्रिटिश औपनिवेशिक परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण थे, बल्कि उन्होंने भारत के भौगोलिक ज्ञान में भी एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1855-56 में नैन सिंह ने पहली बार तुर्किस्तान की यात्रा की, जहां वह एक सर्वेयर और द्विभाषिए के तौर पर कार्यरत हुए। इस यात्रा के अनुभव ने उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा मध्य एशिया के विस्तृत मानचित्र को समझने में सहायता की। इस अनुभव के बाद वह कुछ समय एक स्थानीय स्कूल में हेडमास्टर रहे, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें आगे प्रशिक्षण के लिए देहरादून के ग्रेट ट्रीगोनोमेट्रीक सर्वे के दफ्तर में भेजा। यहां, उन्होंने जासूसी के विभिन्न तरीकों को सीखा, भेष बदलने की कला में विशेषज्ञता हासिल की, और तारों से दिशा पहचानने के औजारों का उपयोग करना सीखा। नैन सिंह का जीवन तब एक रहस्य में बदल गया जब उन्होंने तिब्बत का मानचित्र तैयार करने के लिए यात्रा की। वह 16 साल तक अपने घर नहीं लौटे, जिससे उनके परिवार और समाज ने उन्हें मृत मान लिया था। लेकिन उनकी पत्नी ने अपने पति की वापसी का भरोसा नहीं खोया। उन्होंने हर साल उनके लिए ऊन का एक कोट और पैजामा कातकर रखा। 16 साल बाद, जब नैन सिंह वापस लौटे, तो उनकी पत्नी ने उनके लिए 16 कोट और पैजामे भेंट किए। यह भावनात्मक पल न केवल एक पति-पत्नी के पुनर्मिलन का प्रतीक था, बल्कि यह नैन सिंह की अद्वितीय यात्रा की कहानी का भी हिस्सा बन गया।

1863 में, नैन सिंह और उनके भाई किशन सिंह ने ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे से जुड़कर तिब्बत को भूगोल के नक्शे में लाने का काम शुरू किया। उन्होंने 1875 तक तिब्बत की खोज में गंभीरता से कार्य किया, इस दौरान उन्होंने लगभग 1400 मील की यात्रा की। उनके इस अभिनव प्रयास ने न केवल तिब्बत के भूगोल को स्पष्ट किया, बल्कि यह कार्य अभियानों की तुलना में बहुमूल्य साबित हुआ। इसके लिए, उन्हें अंग्रेजों द्वारा उस समय के सबसे प्रतिष्ठित सम्मान ‘काम्पेनियन इंडियन अवार्ड’ के साथ-साथ रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी द्वारा विक्टोरिया स्वर्ण पदक से भी अलंकृत किया गया। नैन सिंह रावत का जीवन और कार्य आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उनकी यात्रा न केवल भौगोलिक खोजों को निर्दिष्ट करती है, बल्कि वे दृढ़ संकल्प, निस्वार्थता और सेवा भाव का एक उदाहरण भी प्रस्तुत करते हैं। उनके योगदान ने न केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को लाभान्वित किया, बल्कि भारतीय इतिहास में उनकी एक अद्वितीय स्थान भी सुनिश्चित किया। आज, उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि सच्चे समर्पण और कठिनाइयों का सामना करते हुए, किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

ल्हासा से बीजिंग जाना

पं. नैन सिंह रावत, भारतीय सर्वेयर और भौगोलिक अन्वेषण के अद्वितीय व्यक्तित्व, ने 19वीं सदी में तिब्बत के उत्तरी भाग का मानचित्र तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1874 के आसपास, रावत ने लद्दाख के लेह से ल्हासा तक की यात्रा की, जो न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान सिद्ध हुई। रावत की यात्रा का मुख्य उद्देश्य तिब्बत के उत्तरी क्षेत्र का संपूर्ण मानचित्रण करना था। उन्होंने अपने मार्ग में ल्हासा, जिसे तिब्बत की राजधानी माना जाता है, के अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं का अध्ययन किया। ल्हासा से बीजिंग यात्रा की योजना उनके लिए एक महत्त्वपूर्ण अगला चरण थी, जो उन्हें तिब्बत की भौगोलिक स्थिति और वहाँ की ठंडी जलवायु, संस्कृति और जीवनशैली का विश्लेषण करने का एक और अवसर प्रदान करती। हालाँकि, इस यात्रा का निष्पादन संभव नहीं हो सका, लेकिन रावत के द्वारा ल्हासा से बीजिंग जाने का प्रयास उनकी साहसिकता और अन्वेषण की भावना का प्रतीक था।

1876 में “द जियोग्राफिकल मैगजीन” में प्रकाशित लेख ने रावत की खोजों और अनुभव को प्रकाश में लाया, जिससे उन्होंने तिब्बत के भूगोल और वहां की सांस्कृतिक विविधता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। उनकी यात्राओं से प्राप्त जानकारी ने न केवल भारतीय भूगोल को समृद्ध किया, बल्कि तिब्बत की भूमिका को भी एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र के रूप में पुनर्स्थापित किया। इसके अतिरिक्त, रावत ने “ठोक-ज्यालुंग” और “यारकंद यात्रा” जैसी पुस्तकों की रचना की, जो उनके द्वारा की गई यात्रा के विवरण और तिब्बत की भौगोलिक एवं सांस्कृतिक जानकारी को संक्षेप में प्रस्तुत करती हैं। “अक्षांश दर्पण” नामक पुस्तक ने उनकी रणनीतियों और दृष्टिकोन को और स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया।

भारतीय डाक विभाग ने सम्मान में डाक टिकट जारी किया

उनका जीवन और उपलब्धियाँ न केवल पर्वतारोहण की दुनिया में, बल्कि भारतीय संस्कृति और पहचान में भी महत्वपूर्ण हैं। उनके योगदान को मान्यता देते हुए, भारतीय डाक विभाग ने 27 जून 2004 को उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। यह कदम न केवल उनकी उपलब्धियों की सराहना थी, बल्कि एक प्रेरणा स्रोत के रूप में उनकी भूमिका को भी उजागर करता है। 21 अक्टूबर 2015 को, मुनस्यारी के बलाती में नैन सिंह रावत की याद में एक पर्वतारोहण संस्थान की स्थापना की गई। यह संस्थान न केवल पर्वतारोहण के शौकीनों के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र है, बल्कि नैन सिंह रावत के आदर्शों और समर्पण के प्रति एक श्रद्धांजलि भी है। इस संस्थान के माध्यम से नई पीढ़ी को पर्वतारोहण की कला और विज्ञान सिखाना, नैन सिंह की महानता को जीवित रखने का एक प्रयास है।

जन्मदिन पर गूगल ने डूडल जारी किया था

नैन सिंह रावत की पहचान को और मजबूत करने के लिए, 2017 में उनके जन्मदिन के अवसर पर गूगल ने एक डूडल भी जारी किया। यह डूडल इस बात का प्रमाण है कि नैन सिंह की उपलब्धियाँ और प्रभाव केवल भारतीय सीमाओं तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें सराहा जाता है। गूगल का यह कदम उनके जीवन और कार्यों की व्यापकता को दर्शाता है, विशेष रूप से युवा पीढ़ी के बीच उनकी प्रेरणा को बढ़ाने के लिए। पंडित नैन सिंह रावत की उपलब्धियों को कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकता। उनकी जिजीविषा, साहस और नेतृत्व कौशल ने उन्हें एक अद्वितीय सर्वेयर बनाया। जब हम उनके योगदान को देखते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने केवल तिब्बत को मानचित्र पर नहीं लाया, बल्कि उन्होंने भारतीय विज्ञान और अन्वेषण के सर्वोच्च मानकों को भी स्थापित किया। आज उनकी पुण्यतिथि पर, हमें उनके मार्गदर्शन और अद्वितीय साहस को स्मरण करते हुए यह संकल्प लेना चाहिए कि हम भी अपने देश और संस्कृति की सेवा में तत्पर रहेंगे।

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