स्वास्थ्य

श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में काॅर्डिलाॅजी विभाग ने किया अल्टामाॅर्डन डीवीटी प्रोसीजर

पैन्म्ब्रा लाइटिंग फ्लैश सिस्टम तकनीक का मेडिकल साइंस में बड़ी उपलब्धि

देहरादून। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के काॅर्डियोलाॅजी विभाग मंे एक महिला मरीज़ का अत्याधुनिक प्रोसीजर हुआ। है। पैर और फेफड़ों के खून के थक्के के इलाज के लिए पेनुम्ब्रा अत्याधुनिक तकनीक (लाइटनिंग फ्लैश) का उपयोग कर महिला मरीज़ का सफल उपचार किया गया। डीप वेन थ्राॅम्बोसिस (डीवीटी) प्रोसीजर के द्वारा 65 वर्षीय महिला के पांव की नसों से थ्राॅम्बोसिस निकाला गया। प्रोसीजर के बाद महिला स्वस्थ है और उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया है।

काबिलेगौर है कि देहरादून निवासी 65 वर्षीय महिला को पैरों में भारी सूजन और असहनीय दर्द की शिकायत थी। पैर और फेफड़ों में खून के थक्के (क्लॉट) होने की वजह से उनका चलना फिरना मुश्किल हो गया था। मेडिकल साइंस में इस समस्या को डीप वेन थ्रॉम्बोसिस और पल्मोनरी एंबोलिज्म कहा जाता है।

श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल के प्रमुख इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट एवम् कैथ लैब डायरेक्टर डॉ. तनुज भाटिया ने महिला मरीज़ का आधुनिक तकनीक से उपचार किया। यदि इस समस्या का समय पर इलाज न किया जाता, तो यह थक्का फेफड़ों तक पहुंच सकता था और पल्मोनरी एंबोलिज्म की गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती थी, जिससे मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।

डॉ. तनुज भाटिया ने अमेरिका और यूरोप के कई देशों (जैसे यूके, जर्मनी और फ्रांस) में उपयोग हो रही नवीनतम मिनिमली इनवेसिव तकनीक लाइटनिंग फ्लैश कैथेटर का उपयोग किया। यह तकनीक कैलिफोर्निया, अमेरिका स्थित पेनुम्ब्रा द्वारा विकसित और निर्मित की गई है। डॉ. भाटिया ने मरीज के घुटने के नीचे एक छोटा सा चीरा लगाया और उस छोटे से छेद के माध्यम से कैथेटर डालकर पैर से भारी मात्रा में खून का थक्का निकाल दिया। इस डिवाइस में कंप्यूटर असिस्टेड वैक्यूम थ्रॉम्बेक्टॉमी तकनीक है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के समान कार्य करती है। इस कैथेटर में लगे सेंसर रक्त और थक्के में अंतर कर सकते हैं। इस तकनीक की मदद से डॉ. भाटिया ने बेहद कम रक्तस्राव के साथ मरीज के पैर से खून के थक्के हटा दिए। पूरी प्रक्रिया सिर्फ 15 मिनट में पूरी हो गई।

यह प्रक्रिया स्थानीय एनेस्थीसिया के तहत की गई, जिससे मरीज को तुरंत आराम मिला। उनके पैर की सूजन और दर्द कम हो गया। उन्हें सिर्फ एक दिन निगरानी के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इस सफल उपचार के कारण फेफड़ों में थक्का जाने की आशंका समाप्त हो गई, जिससे हृदय की विफलता और संभावित मृत्यु का खतरा टल गया।

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